पेट्रोल औऱ डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की मांग एक बार फिर जोर पकड़ने लगी है. यूपी की राजधानी लखनऊ में जीएसटी काउंसिल  की बैठक में इस पर चर्चा होगी. जीएसटी परिषद की इस बैठक के बीच पेट्रोल, डीजल पर भारी टैक्स के आंकड़े फिर चर्चा में हैं.  क्या आपको मालूम है कि पेट्रोल की वास्तविक कीमत करीब 45 रुपये है औऱ उस पर 55 रुपये के करीब टैक्स लगता है. यानी कीमत से दोगुना टैक्स आम आदमी को पेट्रोल और डीजल  पर चुकाना पड़ता है. अगर पेट्रोल डीजल जीएसटी के दायरे में लाया जाए तो कीमतों में 20 से 25 रुपये प्रति लीटर की राहत मिल सकती है.

अगर दिल्ली में पेट्रोल की बात करें तो बिना टैक्स के दाम 45.05 रुपये प्रति लीटर है और केंद्र का एक्साइज और राज्यों का वैट टैक्स मिलाकर 56.29 रुपये प्रति लीटर होता है. यानी पेट्रोल की कीमत का 55.54 फीसदी उस पर टैक्स है. वहीं डीजल का रेट  दिल्ली में 88.77 रुपये प्रति लीटर है. इसमें वास्तविक कीमत 43.98 रुपये और 44.79 रुपये प्रति लीटर का टैक्स है. यानी डीजल की कीमत का 50 फीसदी से थोड़ा ज्यादा टैक्स लगता है.

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और राज्यों के वित्त मंत्री इस बैठक में हिस्सा लेंगे. लेकिन राज्यों की खराब माली हालत और कोरोना के कारण केंद्र की राजस्व की जरूरतों को देखते हुए इस पर फैसला मुश्किल है. अगर पेट्रोल और डीजल को सीधे जीएसटी के सबसे ज्यादा टैक्स रेट की स्लैब में भी रखा जाए तो कीमत में 20 से 30 रुपये की कमी हो सकती है. लेकिन अभी भी लग्जरी कार, तंबाकू उत्पाद समेत तमाम चीजें 28 फीसदी की टैक्स स्लैब (Highest GST slab of 28%)  में हैं, उनमें भी सरकार कई तरह के सेस (Cess) लगाती है और टैक्स रेट उत्पाद की वास्तविक कीमत के 50 फीसदी से ऊपर पहुंच जाता है.

ऐसे में अगर सरकार पेट्रोल और डीजल पर टैक्स के साथ सेस लगाती है तो ज्यादा राहत मिलने की उम्मीद नहीं है. हालांकि थोड़ी बहुत राहत मौजूदा दामों पर मिल सकती है. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि पीएम मोदी  सरकार को राज्यों को जीएसटी के बदले घाटे की भरपाई भी करनी है, लिहाजा 28 फीसदी जीएसटी पर भी सेस लगाना जरूरी हो जाएगा.

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